रात के अंधेरे में जब अपने,
साये भी हमें डराते हैं,
तब कुछ टूटे हुये ख्वाब हमें,
बहुत याद आते हैं I
कुछ धुंधली सी यादें दिल पर,
देती है दस्तक,
और कुछ सोये हुये दर्द फिर से,
उभर आते हैं I
हर जख्म फिर से अँगड़ाई,
सी लेने लगती है,
और दर्द की परछाईयों में हम,
खो के रह जाते हैं I
जब किसी से कह नहीं पाते हाल-ए-दिल,
हम अपना,
तब अश्कों धारों में हम,
दूर तक बह जाते हैं II
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