अब नहीं मिलते उसके किताबों में वो अल्फाज,
जिसे पढ़ के आँखों से आँसू निकलते थे,
जिसमें यादों की मिठी खुशबु होती थी,
मन की कलियाँ खिल उठती थी, उसके लफ्जों को पढ के II
अब तो उसके लफ्जों में,
बेबसी और लाचारी दिखती है,
अपनों को बाँटने की बेकरारी दिखती है II
कहाँ खो गयी उसके लबों की वो बातें,
जिसपे रहता था हम सभी एक हैं और एक ही रहेंगे,
उसके लफ्जों में अक्सर मैंने सुना था,
एक माँ के हम सभी, जिश्म अलग-अलग पर जान है एक II
अब कहाँ उसके लफ्जों में वो अपनापन,
उसके लफ्जों में तो गैरों की खुशबु घुल सी गयी है II
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